Description
किसी देश की जनसंख्या वहां की समृद्धि एवं विकास के लिए महत्वपूर्ण कारक होता है। इस संबंध में जनसंख्या की मात्रात्मक एवं गुणात्मक विशेषताओं की जानकारी आवश्यक होती है। जनसंख्या की वृद्धि का एक महत्वपूर्ण घटक मत्र्यता है। विकासशील एवं अविकसित राष्ट्रों में मत्र्यता की स्थिति अच्छी नहीं है। भारत की स्थिति को भी अच्छा नहीं कहा जा सकता है। भारत की स्थिति को भी अच्छा नहीं कहा जा सकता है। वहीं भारत की तुलना में छत्तीसगढ़ की स्थिति अधिक चिन्तनीय है। जबकि ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों की मत्र्यता में भी अधिक अन्तर है।
मत्र्यता के अध्ययन में शिशु – मत्र्यता एक महत्वपूर्ण पक्ष है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएॅं अधिक अच्छी है, जिससे नगरीय क्षेत्रों में शिशु – मत्र्यता अपेक्षाकृत कम है । फिर भी विश्व एवं भारत की तुलना में छत्तीसगढ़ के नगरीय क्षेत्रों में शिशु – मत्र्यता की स्थिति सोचनीय है। यद्यपि वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद से शिशु – मत्र्यता में निरंतर कमी आ रही है । ऐसी स्थिति में ‘छत्तीसगढ़ के नगरों में शिषु मत्र्यता प्रतिरूप’ पर डाॅ. सरला शर्मा का यह अध्ययन सामयिक, संदर्भित एवं उपयोगी है।
इस अध्ययन में डाॅ. सरला शर्मा ने छत्तीसगढ़ के नगरों में शिशु – मत्र्यता के कारण, इसे प्रभावित करने वाले जनांकिकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारणों का गहन अध्ययन किया है। साथ ही नगर एवं उपांत क्षेत्रों में पारिवारिक सुविधाओं तथा मातृ – शिशु कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावों का प्रशंसनीय विश्लेषण किया है। यह सम्पूर्ण अध्ययन प्राथमिक आॅंकड़ों के आधार पर किया गया है।
आशा है यह अध्ययन छत्तीसगढ़ में शिशु – मत्र्यता की स्थिति को समझने एवं इसे कम करने हेतु प्रभावी कार्यक्रम बनाने में संलग्न व्यत्तियों, शासकीय एवं अशासकीय अभिकरणों, जनसंख्या भूगोल के अध्येताओं एवं शोध कत्र्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। इस अध्ययन के लिए डाॅ. सरला शर्मा बधाई की पात्र हैं।
एम. पी. गुप्ता
प्रो. एवं भूतपूर्व अध्यक्ष
भूगोल अध्ययनशाला,
पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि.
रायपुर (छ.ग.)
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